स्वावलम्बन प्रातः काल में प्रथम स्मरणीय , स्पर्शनीय मोबाइल ज्यों ही हाथ में आया तो 5 सितम्बर (शिक्षक दिवस) के पुनित अवसर पर प्रतिपल दर्शनीय वाट्सऐप व फेसबुक को परिचित , अपरिचित शुभचिंतकों के शुभकामना संदेशों से भरा पाया। जीवन में अच्छी जगह की हसरत में लघु अध्यापन काल में भी कई विद्यालयों की खाक झानने के कारण हुए अनुभव , परिदृश्यों का एक चलचित्र मनोमस्तिष्क में ऐसा चला कि विचारों का काँरवा उस मनहूस दिवस पर आ ठहरा , जहाँ अपने परिवार और बच्चों के भविष्य की खातिर अपनी फितरत से इतर होकर जल्लात के घुट पीकर समझौतावादी बनना पडा था I आज हर स्कूल की दीवार का वह कोटेशन साफ दिखाई पड रहा था , जिस पर लिखा हुआ था- “शिक्षक वह दीपक है , जो स्वयं जल कर दूसरों को रौशनी देता है। “ उस दिन से पहले तक मैनें राग-द्वेष , छल , कपट , ईष्र्या , निन्दा आदि दुर्गुणो विहिन विशुद्ध शिक्षक की भूमिका का निर्वहन करते हुए ज्ञान दान का महा पुनित कार्य किया है। उस शिक्षक दिवस को अभिनव सोच , सकारात्मक विचारों के प्रणेता , अति महत्वाकांक्षी प्रधानाचार्य जी ने सभी स्टाफ साथियों को वृ...
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